रविवार, 29 अक्तूबर 2023

आँसू

 

क्या तुम्हें एहसास है अनगिनत उन आँसुओं का?

क्या तुम्हें एहसास है सड़ते हुए

नरकंकालों का?

क्या तुम्हें आती नहीं आवाज, रोते नन्हें  

मासूमों की?

क्या नहीं जलता, हृदय देख पीड़ितों को?

 

अफ्रीका-एशिया के शोषित, बीमार, बेघर, शोषित कोटि मनुज,

अनाथ बालकों की सूनी लाचार आँखें

देख-देख कर,

क्या नहीं दुखता

दिल तुम्हारा,

आँख भर आती

नहीं क्यों?

क्यों मिला उनको यह मुकद्दर खौफनाक

दु:ख से भरा?

कितने भूखे-प्यासे बिलखते रोगीष्ट आधारहीन जन,

छिन्न-भिन्न अस्तित्व के बदनुमा दाग से ये तन!

लाचार आँखें पीछा करती हुईं जो न रो सकें,

ये कैसा दृश्य देख रही हूँ मैं , मारकर मेरा मन!

 

एहसास तो है उनकी विवशताओं का मुझे भी,

पर हाय! कुछ कर नहीं पाते कुछ ज्यादा

यह हाथ अपने

लाघवता मनुज की

असाधारण विवशता

ढेर-सी,

भ्रमित करती मेरे मन की पीड़ा, मेरे ही हृदय को!

 

यह वसुंधरा कब स्वर्ग-सी सुंदर सजेगी देव मेरे?

कब धरा पर हर जीव सुख की सांस लेगा

देव मेरे?

कब न कोई भूखा या प्यासा रहेगा

ओ देव मेरे?

कब मनुज के उत्थान के सोपान का

नव सूर्योदय उगेगा?

- लावण्या शाह 

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