फिर फागुन मदमाता आया
उमगा हृदय कछार
लाज निगोड़ी पहरा देती
थाम पलक की डोर
मन का छौना जब बौराया
छुड़ा ले गया छोर
नैन अधमुँदे शोख़ अदाएँ
करती हैं मनुहार
सुधियों से चल पार.....
यौवन आया लहका कोमल
हरसिंगारी गात
कौन चुराता है किंशुक के
देह से हरित पात
तप्त श्वास में प्यास जगी है
कैसा प्रीति बुखार
अधर हुए कचनार.....
सन्दल घुलने लगा साँस में
महकी चलें तरंग
रग-रग महुए की मदहोशी
मन हो रहा मलंग
शब्दों से बोली शरमायीं
कैसे हो इक़रार
मुखर मौन उद्गार.....
उच्छृंखल हो रहीं शरारत
मानें ना प्रतिबन्ध
पंख हवा के लिए कल्पना
चली तोड़ सब बन्ध
कहता है पाहुन ऋतुराजन
खोल प्रणय के द्वार
कर भी ले अभिसार.....
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