मंगलवार, 9 जनवरी 2024

मैं हूँ तुम्हारी प्रेम कविता

 रचते हो तुम नित मुझको

लिखते हो तुम नित मुझको

कभी प्राण प्यारी

कभी मृगनयनी

कभी उर्वशी

कभी जलपरी

मैं हूँ तुम्हारी प्रेरणा

मैं हूँ तुम्हारी प्रेम कविता

 

भरते ही रोज़ रंग नए तुम

रचते हो रोज़ रंग नए तुम

खाली कैनवस में

रंग तुम्हारे प्रेम के

यूँ लगते हैं बिखरने

जैसे धरती की चादर  पर

सूरज की किरणें

मैं हूँ तुम्हारी प्रेम प्रेरणा

मैं हूँ तुम्हारी प्रेम कविता

 

हर पल बिखराते हो सुर तुम

लय और ताल के साथ

नृत्य करती हूँ मैं जिस पर

वो केवल धुन तुम्हारे प्रेम की

एक सूनी शाम प्रेम की

मैं हूँ तुम्हारा प्रेम रंग

मैं हूँ तुम्हारी प्रेम कविता

 

डॉ. रवीन्द्रन

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