न बरसात का मौसम है
न शबनम ही गिरती है
पर जहाँ बैठ कर अक्सर
तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ
न जाने उस खिड़की की चौखट
नम क्यों रहती है
- प्रदीप शर्मा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें