साथ-साथ चलती हैं पर मिलती कहाँ है...
रेल गाड़ी की पटरियाँ...
बहुत दूर मिलती हुई दिखती हैं...
वहाँ पहुँचता हूँ उनका मिलन देखने...
फिर से छिटक जाती हैं...
तुम्हारी तरह...
- प्रदीप शर्मा
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