तेरी दुनिया ले चल माँ।
जहाँ अलग हों जल-थल माँ।
यह दुनिया संजीदा है
मैं थोड़ा-सा चंचल माँ।
मुझ पागल को बुद्धि दे
हो जाऊँगा पागल माँ।
रूह कहाँ है दुनिया में?
सब कुछ कितना माँसल माँ!
मुझ बेटे को सीने दे
लीरां-लीरां आँचल माँ।
भक्ति भी तो साँकल है
कैसे तोड़ूँ साँकल माँ?
अब तो होता जाता है
आँखों से सब ओझल माँ।
- मनमीत
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