शुक्रवार, 6 अक्तूबर 2023

माँ

 तेरी   दुनिया   ले   चल   माँ।

जहाँ अलग हों जल-थल माँ।


यह    दुनिया    संजीदा    है

मैं    थोड़ा-सा    चंचल   माँ।


मुझ   पागल   को   बुद्धि  दे

हो    जाऊँगा    पागल    माँ।


रूह   कहाँ   है   दुनिया   में?

सब कुछ कितना माँसल माँ!


मुझ    बेटे    को    सीने    दे

लीरां-लीरां     आँचल     माँ।


भक्ति   भी   तो   साँकल  है

कैसे    तोड़ूँ    साँकल    माँ?


अब   तो   होता   जाता   है

आँखों  से  सब  ओझल माँ। 

- मनमीत 

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