किसने किया किस का इंतज़ार?
क्या पेड़ ने फल फूल का?
फल ने किया क्या बीज का?
बीज ने फ़िर, किया पेड़ का?
हर बार, ज़िंदगी
जीत गई!
प्रेमी ने पाई परछाईं, अपने मस्ताने यौवन की,
प्रिय की कजरारी आँखों में,
शिशु मुस्कान चमकती –सी, और,
उस बार भी ज़िंदगी
जीत गई!
हर पल परिवर्तित परिदृश्यों में,
उगते रवि के फ़िर
ढलने में,
चंदा के चंचल चलने में, भूपाली के उठते
स्पंदन में, रात,
यमन तरंगों में,
मुखरित
हर बार, ज़िंदगी
जीत गई!
साधक की विशुद्ध साधना में,
तापस की अटल तपस्या में, मौनी
की मौन
अवस्था में,
नि: सीम की निशब्द क्रियाओं में, मुखरित,
हर बार ज़िंदगी
जीत गई!
- लावण्या दीपक शाह
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