बुधवार, 1 नवंबर 2023

इंतज़ार

 

"कागा सब तन खइयो...चुन चुन खइयो माँस

दो नैना मत खइयो ...मोहे पिया मिलन की आस "

......

सुना था कभी !

और उस पराकाष्ठा को समझना चाहा था,

जो विरह की वेदना से उगती है -

और उसे उस दिन जाना -

जब सीमा पर तुम्हारे लापता होने की खबर आयी-

जैसे सब कुछ भुरभुरा कर ढेह गया !!

बस एक आस बाक़ी थी

जो खड़ी रही

मजबूती से पैर जमाये -

पांवों के नीचे से फिसलती रेत को

पंजों से भींचती हुई ..

कहती हुई -

"तुम आओगे ज़रूर ..."

मैं आज भी आँखों में दीप बाले बैठी हूँ -

वह आस..

आज भी चौखट से लगी बैठी है ...!!!

 

- सरस दरबारी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें