शनिवार, 23 दिसंबर 2023

अश्वमेघ यज्ञ

 

घोड़ा अब भी चल रहा

इच्छा भी उतनी ही बलवती

अधिनायक के ललाट की चमक उतनी ही तेज,

 

और शासन सत्ता की चाह पहन कर आती

सदैव ही केचुल धर्म की, सेवा की

और परोपकार के मुकुट

 

जानते नहीं, परमार्थ के लिए जरूरी होती हैं

चाभियाँ शाही खजाने की

ढेर सारी संपदा और अधिकार

लगाम थामने वाले को अब भी

अपने अस्तित्व के लिए

युद्ध में उतरना ही पड़ेगा

 

बस अंतर इतना सा ही आया

कि युद्ध अब हथियारों से नहीं

भावनाओं के उभार से जीते जाते हैं

 

अश्वमेघ यज्ञ निरन्तर जारी है....

 

- हरदीप सबरवाल 

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