रविवार, 24 दिसंबर 2023

रात भर

मैं सोया नहीं रात भर

ख्वाबों में भी बिछड़ जाने के डर से

रखे रखा हाथ तुम्हारे हाथ पर

दबा रखा हो चांद जैसे

हथेलियों के बीच और

खतरा है

उसके पिघल कर उड़ जाने का

सूरज की सारी गर्मी

 सोख ली मेरी नसों ने

अजीब ये रहा कि

मैं रोई नहीं

न कोई मातम मनाया

चांद के पिघल कर बह जाने का

बस रातों को कैद कर दिया

बंद दरवाजों के पीछे

सुबहों को छोड़ आया

दूर किसी वीराने में

भटकने के लिए।

-योजना श्योराण

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