मैं सोया नहीं रात भर
ख्वाबों में भी बिछड़ जाने के डर से
रखे रखा हाथ तुम्हारे हाथ पर
दबा रखा हो चांद जैसे
हथेलियों के बीच और
खतरा है
उसके पिघल कर उड़ जाने का
सूरज की सारी गर्मी
सोख ली मेरी नसों ने
अजीब ये रहा कि
मैं रोई नहीं
न कोई मातम मनाया
चांद के पिघल कर बह जाने का
बस रातों को कैद कर दिया
बंद दरवाजों के पीछे
सुबहों को छोड़ आया
दूर किसी वीराने में
भटकने के लिए।
-योजना श्योराण
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