बुधवार, 3 जनवरी 2024

शाम पाँच बजे

शाम पाँच बजे,                               

शिद्दत से की थी मोहब्बत

न रात न दिन का चैन था उसे

एक झलक को उसकी

घंटों खड़े बाट जोहते

वो मुस्कुराती शर्माती

थोड़ी सी चहरे

पर हल्की सी गिरती आई

रूठी जुल्फों की लट को अपनी लंबी उंगलियों से पीछे को समेटते हुए

ठीक अपनी सहेली की

ओट में धीरे धीरे चलती हुई

इतरा के निकल जाती थी

कसम से इतनी कोफ्त होती

 

फिर अगले दिन का इंतजार

 ऊपर से दिसंबर की ठंड में

ये लंबी तन्हा रातें

मन करता कि अभी सवेरा हों जाए

वो फिर शर्माती 

घबराती, इतराती

उजाले में बाहर आ आ जाए **

इजहार हो मनुहार हो

 

कमबख्त खत्म कब होगा यह इंतजार

कब होगा इजहार मुकम्मल

और  एक दिन

बिलकुल एक गज पर खड़े होकर निडर

निर्भीक बोली,

गली के पीछे आखिरी

दाहिने मोड़ पर शाम को 5बजे

वहीं जहाँ गुलमहोर का एक पेड़ है

और

तेजी से भागती हुई

अपनी गली के मुहाने से

गायब हो गई

 उस एक ही पल में सारी जिंदगी जी जा सकती थी

और वो शायद जी भी गया उस पल

 

कसम से उस दिन मालूम

पड़ा कि हवा उड़ते परिंदे इतने

चहकते क्यों हैं

धूप उजली भी होती है

गुलाब का फूल

सुर्ख लाल इसकी

भीनी- भीनी खुशबू

और कम्बख्त ये मोहब्बत

उफ्फ

 मन करा रहा था कि

उठा कर सबसे छोटी सुई को

सीधे 5 पर पहुँचा दे

आखिर उस दिन छोटी सुई

इतना धीरे क्यों चली

आखिर कब बजेंगे शाम पाँच 

आज ही बदल दूँगा इसे

 

यह दिन जाड़ों में कितने जल्दी

रात की ओर सिमट जाते हैं

खैर ठीक दस मिनट पहले पहुँचा

करते इंतजार शाम से रात घिर आई

फिर अगले दिन

की सुबह पाँच से शाम के पाँच बज गए

दो दिन से भूखे प्यासे देख आशिक हज्जूम घिर आया

रिसते आँसू से चहरे पर चिपकी धूल, न सोई सुर्ख लाल आखें

हफ्ते से महीने, कई बरस हो गए

पर वो नहीं आई

कभी नहीं आई

न कभी दिखी उसकी एक झलक

याद है,

तो वो सिर्फ उन कहे अल्फाजों में ढूँढते हुई अपनी मोहब्बत

फिर कभी सवेरा देखा ही नहीं उसने

कब सूरज निकलता है

कब रात क्या दिन

बस एक ही इंतजार शाम पाँच बजे

एक ही पल थम -सा गया

रुक -सा गया

जोरह रह कर गुजरता

अभी

देर ही कितनी हुई है

उस दिन कुछ ज्यादा चमक थी

मचलती इठलाती एक

उमंग थी

उसकी आखों में,

हया थी वफा थी,

कुछ था ऐसा ,कहते

सुर्ख होठ काँप रहे थे

सूख रहे थे हलक में आकर

धीरे से अल्फाज निकले

दाहिने मोड़ पर शाम को 5बजे

 

यही कहे थे न,

दाहिने मोड़ पर शाम को 5बजे

जी, भाईजान

सही कहा आपने

सारा शहर जानता है ,

आशिक वाली ये गली ।

 

मोहब्बत कसम से बड़ी जल्लाद है

सारा कसूर शराब को क्यों जाता है

मोहब्बत का नशा तो अच्छे भले को

यूहीं बर्बाद कर जाता है ,

- यशोवर्धन 'यश'


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