खंडहर होती बस्तियाँ हों,
या खंडहर होते दिल,
अधिक फर्क नहीं पड़ता,
खंडहर दिल और वहशी दिमाग।
उजड़ जाते हैं जज्बात से,
सच्चे प्यार और इंसानियत से,
फिर शहर बसें या सभ्यताएँ,
खोखले होते हैं जज्बातों बिना।
हजारों वर्षों में विकसित मानव सभ्यता,
सिसक रही स्वार्थी संसार से,
वतन में पराए होते इंसानों और जज्बातों,
और परदेश में अपनों और भावनाओं बिना।
अट्टालिकाओं, रोबोटों
और अंतरिक्ष यानों में,
सुख ढूँढता मनुष्य,
पृथ्वी ग्रह पर सब खोता,
नए ग्रहों की ओर जा रहा मनुष्य।
कहाँ से लाएँगे इंसान वह सुख,
जो मिलता था प्रेम भरे जीवन में,
अंधेरों में भी रहने में,
अपनों के साथ सपनों में खोने में ।
- अमिताभ शुक्ल
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