रविवार, 14 अप्रैल 2024

बेटा! ‘राम निवास’!!

 

निरा निकम्मा बने रहोगे,

कब तक,

बेटा! ‘राम निवास’!!

 

जब से जन्म लिया है, घर की

खुशहाली है गायब,

घनी गरीबी बैठी घर में,

भूखमरी है नायब,

कभी पिया है! बोलो लेकर 

अब तक

पानी एक गिलास!

 

समय डरा है, डरा हुआ है

पुरुखों का जनवासा,

तिरस्कार से रँगा हुआ है,

स्वाभिमान का पासा,

बना हुआ है घर मधुशाला 

जब तक

उत्तम ‘रमा-विलास’!

 

नहीं आज तक तुमने चाहा,

श्रम से हाथ मिलाना,

बड़े हो रहे छोटे बच्चे,

शिक्षा-दूध पिलाना,

बहुत उदास रहेंगे घर के 

तब तक

सँड़सी और पिलास!

 

-शिवानन्द सिंह 'सहयोगी'

           वाराणसी

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