हवा में आज कुछ नमी - सी है
इसी से ये रुकी , रुकी सी है
न मैं सुनूँ न दिल सुने , हममे
कई बरस से कुछ ठनी - सी है
है इक ख़लिश सी ख़ानाए दिल मे
दिमाग मे भी खलबली - सी है
हुजूर उनके जिंदगी गुज़रे
इक आरजू दबी , दबी - सी है
मेरा नसीब भी यही होगा
जो बन्द सामने गली - सी है
- कपिल कुमार
ख़लिश...चुभन,टीस
ख़ानाए दिल...ह्रदय रूपी घ
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