वो बाबुल की गलियाँ
मुस्काता बचपन
खुशबू से भरीं कलियाँ
बहकाये मतवारी
दिन में रात करें
ये अँखियाँ कजरारी
इक नेह बँधा धागा
अंतस को खींचे
मुंडेरों पर कागा
ये रुत पुरवाई की
सावन के झूले
औ याद विदाई की
- सोनम यादव
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