डायरी में कैद गुलाब की
अनगिनत दास्ताँ!
हर यौवन का गवाह,
धड़कनों का अनवरत प्रवाह!
समेटे अपने-आप में,
सुख-दुःख,
संतुष्टि-असंतुष्टि,
हास-रुदन,
इच्छा-आकांक्षाएँ और चाह।
अक़्सर किसी दिलफेंक
आशिक द्वारा
प्रसाद की तरह
बाँट दिया जाता है अथाह।
तो कभी किसी सच्चे,
भावुक-कोमल-संवेदनशील,
प्रेमी या प्रेमिका
अन्तर्मुखी-आत्मकेंद्रित
एकात्मिक भाव वाली
जीवनी शक्ति!
जिसकी पीड़ा में कैद
रह जाता है
सफलतम उत्साह।
जो देने के लिए
गया तो था;
पर घर-परिवार,
सामाजिक लोकलाज
की आड़ में
दबा-छिपा रह जाता है।
हिम्मत-साहस
नहीं कर पाता है,
सोच-समझ कर गुनाह!
और उस गुलाब को देखकर
यादों की बरसात में,
गुज़रे लम्हों के साथ में;
ज़िंदगी भर पछताता है।
फिर अपने-अपने
मन-मानसिकता
के हिसाब से
भावी पीढ़ी के लिए,
सहयोगी-असहयोगी
बन जाता है,
चाह-अनचाह!
क्या तुमने अनुभव किया है
वो प्रत्येक आह?
मैंने तो महसूस किया है,
वीरान खंडहर सा
टूटे-बिखरे हृदय में,
शीतलता के बदले में दाह।
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