गुरुवार, 26 अक्तूबर 2023

डायरी में कैद गुलाब, पाण्डेय सरिता,

 

डायरी में कैद गुलाब की

अनगिनत दास्ताँ!

 

हर यौवन का गवाह,

धड़कनों का अनवरत प्रवाह!

समेटे अपने-आप में,

सुख-दुःख,

संतुष्टि-असंतुष्टि,

हास-रुदन,

इच्छा-आकांक्षाएँ और चाह।

 

अक़्सर किसी दिलफेंक

आशिक द्वारा

प्रसाद की तरह

बाँट दिया जाता है अथाह।

 

तो कभी किसी सच्चे,

भावुक-कोमल-संवेदनशील,

प्रेमी या प्रेमिका

अन्तर्मुखी-आत्मकेंद्रित

एकात्मिक भाव वाली

जीवनी शक्ति!

जिसकी पीड़ा में कैद

रह जाता है

सफलतम उत्साह।

 

जो देने के लिए

गया तो था;

पर घर-परिवार,

सामाजिक लोकलाज

की आड़ में

दबा-छिपा रह जाता है।

हिम्मत-साहस

नहीं कर पाता है,

सोच-समझ कर गुनाह!

 

और उस गुलाब को देखकर

यादों की बरसात में,

गुज़रे लम्हों के साथ में;

ज़िंदगी भर पछताता है।

फिर अपने-अपने

मन-मानसिकता

के हिसाब से

भावी पीढ़ी के लिए,

सहयोगी-असहयोगी

बन जाता है,

चाह-अनचाह!

 

क्या तुमने अनुभव किया है

वो प्रत्येक आह?

मैंने तो महसूस किया है,

वीरान खंडहर सा

टूटे-बिखरे हृदय में,

शीतलता के बदले में दाह।

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