शनिवार, 4 नवंबर 2023

ग़ज़ल

 

हाँ! कहो  हिन्दी  हमारी आन  हो जैसे

हम  सहेजेंगे  इसे के  जान  हो  जैसे

 

बोल रूठें जो अगर संवाद गुमसुम हो

शब्द का भण्डार इसका खान हो जैसे

 

देश की  भाषा बनाकर  पूजना इसको

बोलियाँ  इसकी  हमारी शान  हो जैसे

 

है कभी वीणा कभी  सन्तूर की धुन है

मधुरिमा  इसकी मनोहर  तान हो जैसे

 

हो सदा विस्तार इसका चहुँ दिशाओं में

बाँटते   इसको   रहेंगे  दान   हो   जैसे

 

ख़ूब  लिक्खेंगे  पढ़ेंगे  कोष  हिंदी   के

सूर  तुलसी या कभी रसखान हो जैसे

 

एक दिन देकर उसे फिर भूल ना जाना

भारती  से  यह मिला  वरदान  हो जैसे

 

लिख गए  टैगोर भी जयगान  हिन्दी में

है समर्पित  देश को , यशगान  हो जैसे

 

ले रही है प्रण 'सुधा' कि जान जबतक है

कण्ठ  में   धारे रहूँ  रसपान   हो  जैसे

 

-  सुधा राठौर

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