बुधवार, 15 नवंबर 2023

धनुष-बाण तेरे घुस आते

 

बौछारें नयनों  से निकली

धनुष-बाण तेरे घुस आते।

 

मैं ग्वाला अज्ञानी ठहरा

किशन समझ तुम आई राधा

सपनीली आँखों में तेरी

खुद को पाता आधा आधा

हाथ बढ़ाने के क्षण मुझसे,

फिसले ऐसे रूक न पाते।

 

मौन इशारों में क्या कहती

आशय कुछ भी समझ न पाता

हमलावर मुद्रायें तेरी,

बोझ बनी, मैं दिल पर ढाता

नखशिख झटका दे दिमाग की,

तंत्री क्यों झंझोड़े जाते।

 

बरगलाती रिसती गिरती

मदमस्ती दामन में छाई

रूप छटा आकर्षित करती

जिस्म अप्सरा का ले आई

रूह के बुलंद स्वर तेरे,

मादक धुनसंगीत सुनाते।

-    हरिहर झा

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