कैसा है हरजाई दुःख।
सुख की है परछाई दुःख।
खारे-खारे अश्कों का
मोटा-सा हलवाई दुःख।
मैं सबसे अच्छा बकरा
सबसे बड़ा कसाई दुःख।
मेरे हिस्से में
आ कर
देता राम दुहाई
दुःख।
मैं भी सोऊँ
तू भी सो
बजे रात के ढाई
दुःख।
तब जाकर के हुई ग़ज़ल
जोड़ा पाई - पाई दुःख।
-मनमीत
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