रविवार, 3 दिसंबर 2023

दुख

 कैसा   है   हरजाई  दुःख।

सुख की है  परछाई दुःख।

 

खारे-खारे    अश्कों   का

मोटा-सा   हलवाई  दुःख।

 

मैं सबसे  अच्छा  बकरा

सबसे बड़ा  कसाई दुःख।

 

मेरे   हिस्से   में    कर

देता   राम  दुहाई   दुःख।

 

मैं  भी  सोऊँ  तू  भी  सो

बजे  रात  के  ढाई दुःख।

 

तब जाकर के हुई ग़ज़ल

जोड़ा  पाई - पाई  दुःख।

 

-मनमीत

 

 

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