सोमवार, 4 दिसंबर 2023

अवैध ! प्रेम को विदा करते वक़्त

उसी सरसरी निगाह से देखा मैंने

ट्रक पर लद रहे सामान को

जैसे देख रहे थे मोहल्ले के बाकी आदमी

अलसुबह जब पत्नी ने इस विषय में बात की

मैंने लगभग उतनी ही प्रतिक्रिया दी

जितनी देता हूँ  मोहल्ले के किसी अन्य स्थांतरण को

 

उसके पति से जरूर ली गर्मजोशी से विदा

जो रुतबे और दौलत में मुझसे बेहतर होकर भी

हमेशा मुझे खुद से कमतर ही लगता रहा

शायद वैसा ही वो भी महसूस करती होगी

जब देखती होगी उस से कहीं अधिक रूपवती

मेरी पत्नी को फैशनेबल परिधान में

 

गली के कोने में रहने वाली और

'आजतक के नाम से मशहूर महिला से

नज़रे बचा उसने मुझे कनखिओं  से देखा

और फेंक दी मेरी तरफ ढेर सारी उदासी

और रिक्तता ...

 

जानता हूँ  

उसका यूं जीवन में आना

जीवन में अतिरिक्त जीवन भरने जैसा

अनगिनत खोए रंगों को

फिर से भर, मुझे

मुझसे मिलाने जैसा

 

हम जितनी बार भी मिले , मिले

बेबाकी से, पूरे समर्पण से

इतने बेखुद कि

कि उन पलों में हमारा सारा वजूद

सिर्फ उन चंद लम्हों में सिमट जाता

 

फिर भी हमारे अंदर  ये भरा था

परवरिश ने नस नस में

किसी को पता ना चले

ऐसा भी नहीं कि कोई जानता ना हो

मेरे दोस्त ने सुन रखे थे

सब मुलाकातों के किस्से

उसकी सहेली भी  मूक दर्शक रही

और शायद

चील की तरह लोगों की जिंदगी पर

नजर रखने वाले मोहल्ले दार  भी

 

हमारे रिश्ते में सबसे मुश्किल रहा

एक दूसरे से मिले तोहफे को

दुनिया के सामने रखने का

किट्टी, लॉटरी, दोस्त ने दिया

जैसे अनगिनत बहानो से

झूठ बोलते हुए तृप्त किया

अपने अंतस को

 

जानता हूँ,

इस तरह विदा करना

सच में विदा करना नहीं

क्योंकि विदाई के सारे भाव

सारे आँसू सारी हँसी

सारे दुख, सारी पीढ़ा

गोपनीय ही रही

हमारे संबंधों की तरह

 

फिर भी

इसी दृढ़ विश्वास के साथ

मैंने उसे विदा किया

शायद उसने भी

कि हम

फिर मिलेंगे

और जब मिलेंगे

 मिलेंगे भी उतनी ही शिद्दत  से

उतनी ही बेबाकी, उतने ही समर्पण के साथ

और साथ ही

उतनी ही गोपनीयता से...

-     हरदीप सबरवाल

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