वक्त क्या है?
बँटा हुआ सच,
की माया जाल?
भूत, भविष्य
या वर्तमान?
फ़्रीझ फ्रेम में बंधे लमहे,
फोटो इमेजेस,
स्लाइड शो?
पद्म पर्ण पर लेटे
बाल मुकुंद~
शेषशायी नारायण
क्षीर सागर पर ~
उल्काएँ ब्रह्माण्ड में तिरोहित
असीम व्योम पर
सृष्टि सर्जन,
नटराज नर्तन,
समाधिष्ट कैलाश पर?
वन चले राम रघु राई,
संग जानकी माई और
साथ लक्ष्मण जैसा भाई,
फिर रावण - वध!
मिस्र में उठते पिरामिड,
शिलाएँ ढोतीं पीठ
हम्मुरब्बी का नियामक
शिलालेख, असीरिया
में !
चीन में, बारूद,
कागज़ की ईजाद
इस्तेमाल फ़ानूस
सुंदर सिंधु घाटी,
सभ्यता की नींव और
अचानक मिट जाना!
वो वक्त बिता,
आये समुद्र गुप्त,
चन्द्र गुप्त, अशोक,
पाणिनी, भवभूति,
वराह मिहिर,
आर्य भट्ट और चाणक्य!
शक, कुषाण,
हुण, तैमूर
लंग,
चौल राज्य, चालुक्य,
पांड्य राज्य
सात वाहन,
मदुरै, मीनाक्षी,
बसे मंदिर - नगर औ'
खजुराहो - अजंता -
मुग़ल आये, दिया
दिल्ली नया नाम
जिन्होंने प्राचीन
इंद्रप्रस्थ को,
ताज महल,
मोती मस्जिद,
क़ुतुब मीनार, सीकरी,
बुलंद दरवाज़ा बने।
मुग़लों की दौलत को सलाम करते,
गोरे घुस आये,
भारत भूमि पर
औद्योगिक क्रांति के बल से, मुड़ गई दिशा,
पाश्चात्य सभ्यता की
लड़ मरे, आपस
में,
फ़्रांसीसी, इतालवी,
जर्मन, स्पेनिश,
डच,
बर्तानवी यहूदी से
देखता रहा, इन
युद्धों की
विभीषिका को
मध्य पूर्व एशिया,
रूस औ' चीन!
बसा अमरीका भू खंड,
यूरोप के ही अंश से
और प्रगति कर
बहुत आगे बढ़ा।
चाँद पर जा पहुँचा आदमी! भूत काल,
आज का वर्तमान,
बीसवीं सदी बना।
दो - दो महा युद्ध आये और चले गए,
दौड़तीं रहीं मशीनें
प्रत्येक भू खंड पे
अणु - संधान,
बम - विस्फोट से,
नर, पूर्ण
नर - संहारक
है अब बना।
क्या कहें, क्या
होगा भविष्य का ?
मानव जाति का,
मानवीय सभ्यता का ?
सोचें यदि,
२१ वीं शताब्दी का
यह तो महज़,
प्राम्भिक काल है ~
मोबाइल, वायर
- लेस तकनीक, डीवीडी,
सीडी,टी. वी.
कंप्यूटर मल्टी मीडिया,
दूरसंचार, क्वांटम
फ़िज़िक्स
विज्ञान युग की देन,
सुविधाएँ अत्याधुनिक उपकरण~
आगे फैला है
महा ~ सागर,
आनेवाले भावि
इतिहास का,
जो है अनिश्चित्त!
“वसुधैव कुटुम्बकम,”
विश्व एक नन्हा सा
गोलार्ध है नील ग्रह
पृथ्वी विशाल,
असीम व्योम पट पर,
मानव का यही
एक घर है, बड़ा
सुँदर है ~
क्या हम, इसे
नष्ट होने देंगें ? या
स्वर्ग
स्थापित करेंगें
भूतल पर ?
आगे की शेष ~ कथा
क्या होगी ?
आनेवाला "वक़्त " लिखेगा
एक नई कविता
जो सोच रहें हैं हम
आज हमारी
प्रार्थनाएँ , दुआएँ
ए " वक़्त "
तुम्हारे नाम हैं !
~ लावण्या शाह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें