रविवार, 17 दिसंबर 2023

आँसुओं के बीचों-बीच

क्या आपने

किसी अपने की रोग शैय्या के पास बैठी

स्त्री की आँख में बंद आँसुओं को देखा है

 

इन ठहरे आँसुओं में

ना पानी होता है

ना पीड़ा और ना ही कोई प्रार्थना

 

उनमें होती है

एक जिद

स्व को स्वयं से छिपाने की

रीत रहे समय को बचाने की

ईश्वरीय ताकत से सीधा टकराने की

 

इन रुके आँसुओं से झाँकती हैं

अतीत की धुँधली परछाइयाँ   

जमा रहता है

वर्तमान का ढेर सारा मलवा

और स्थगित भविष्य का अंधेरा

 

ये तब और गाढ़े हो जाते हैं

जब उन्हें पूछने और पौछाने वाले शब्द

अपना अर्थ खो देते हैं

 

इन आँसुओं में

बर्फ की सघन ठंड लिए

आग की गहरी तपिश होती है

एक पूरा जीवन

बाहर आने को छटपटाता है

 

एक दिन

सारे तटबन्ध तोड़कर

बह निकलते हैं

सैलाब की शक्ल में

और बहा ले जाते हैं

अपने साथ

वह सब जो आस पास बिखरा है

 

आँसुओं के बीचों- बीच

बच जाती है

एक अकेली स्त्री

सैलाब में बहते पेड़ के तने पर बैठी

उदास गौरेया की मानिंद 

 

-    रास बिहारी गौड़ 

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