मंगलवार, 19 दिसंबर 2023

मध्यांतर के बाद

 

मध्यांतर के बाद इंतजार रहता है

उत्कर्ष का

रहस्य का आवरण उतरता हुआ,

गुत्थियों की परतें

सुलझने की आकांक्षा में ऊपर नीचे होती साँस,

ढेर सारे संघर्षों के

फलीभूत होने के चित्रित होने का समय,

दुखों के

अंत की परिभाषा के नए आयाम

और हजारों जुल्मों के बदला लेने की

दास्तान,

उभरते नायकत्व

सत्यमेव जयते से लेकर

तमाम किवदंतियों के साक्षात्कार का समय,

 

मध्यांतर के बाद

सपाट रहने वाली गाथाएँ

वितृष्णा से भरती,

वक़्त की बर्बादी का तकाजा बन भर

कचोटती,

वाहयात गालियों, अपशब्दों से नवाजी जाती,

बेकार

जैसे अलंकारों से सुसज्जित होती,

सब कुछ बेमजा करती,

 

यूँ जीवन के मध्यांतर के बाद भी

ना उत्कर्ष आता

ना गुत्थियों की परतें खुलती

ना ही किवदंतियों को सामने लाते

किसी नायकत्व का उभार होता

 

बेशक नहीं

फिर भी

जीवन उतना ही सरस सहज लगता,

उसी एक सपाट ढर्रे में जीते रहने से भी

नहीं भरता दिल,

बुरा नहीं लगता बेरस जीवन भी

ना बेमजा होता जीना,

 

आखिर

जीवन और गाथा में

इतना अंतर तो जायज ही है.....

 

-हरदीप सबरवाल 

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