भाद्र माह की शुक्ल चतुर्थी,
पावन तिथि मन भाये।
भक्तिभाव आस्था पुनि जागी,
घर गजवदना आये।
लम्बी सूँड़ दन्त दो उजले,
माथे तिलक सुहाये।
बेलपत्र दूर्वादल गुड़हल,
लडुअन भोग लगाये।
लंबोदर पीतांबर धारी,
मोदक रुचि- रुचि खाये।
मूषक ऊपर बैठि गजानन,
तीनहिं लोक घुमाये।
रिद्धि-सिद्धि और बुद्धि दाता,
शरण गहे को धाये।
गौरी- नन्दन हे शंकर-सुत,
चरणन रखो लगाये।
-सुधा राठौर
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