यह जानते हुए भी कि फेसबुक सिर्फ समय व्यतीत करना है,
अखबार पढ़ने से भी कुछ नहीं बदलना है,
जारी रहती हैं यह क्रियाएँ,
कितनी भारी है लाचारी।
क्या रोक नहीं सकते हम वह करना,
जिसे समझते हैं व्यर्थ का करना।
जैसे छोड़ दिया है लोगों ने बहसें करना,
भलाई के काम करना।।
सहानुभूति और संवेदना व्यर्थ है,
यह आज के समय की सीख है,
नई शिक्षाएँ और अदाएँ अब
जारी हैं,
क्योंकि उनसे ही सफलता पानी हैं।
यह जानते हुए भी कि वर्ष नया होते हुए भी,
रहेगा सब कुछ पुराना ही जिंदगी में,
करते हैं हम बहाने खुश होने और बधाई देने के,
क्योंकि यही तरीके हैं जिंदगी जीने के।।
काश बदल जाए सब कुछ सोचते हैं सब,
पर गढ़नी होती हैं नई परिभाषाएँ सबकी,
इतना साहस न होने पर वही ढर्रा है ,
जिससे कहाँ उबरना है?
शायद यही आम आदमी का जीवन हे,
मनुष्य के मंगल और चाँद पर पहुँचने पर भी,
जिसे न बदलना है,
केवल समाचार पढ़ना है।
विकास के समाचारों की तरह विकास मानना है,
लोकतंत्र में विश्वास करते हुए वोट देना है,
कंप्यूटर ,लैपटॉप और इलेक्ट्रोनिक घड़ी के साथ,
तरक्की मान कर आगे बढ़ना है।।
- अमिताभ शुक्ल
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