अर्थ का शास्त्र कितना भारी हो गया,
हर व्यक्ति व्यापारी हो गया।
सब जगह गुणा - भाग है,
पाई-
पाई का हिसाब हैl
पुलवामा हो या डोकलाम,
काशी हो या अयोध्या,
गाँव हो या शहर,
सब कुछ अर्थ - मय हो गयाl
सारे संबंध स्वार्थी हो गए,
सब व्यक्ति अर्थशास्त्र के पारखी हो गए,
प्याज की भी कीमत है,
और गेहूँ की भी,
कैसे बने प्याज और
रोटी का निवाला ...?
जीवन एक व्यापार न होता,
तो सारा कोहराम ना होताl
आत्मनिर्भर कैसे बने इंसान और देश?
जब हर चीज की है कीमतl
और कीमत चुकाने के लिए,
करने पड़ते हैं धंधेl
सारे संबंध तार-तार हो गए,
क्योंकि सम्बन्ध व्यापार हो गए l
- अमिताभ शुक्ल
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