शनिवार, 6 जनवरी 2024

मौसम

खिड़की खोले देख रही हूँ

मौसम का आना जाना

साँसों के संग- संग चलता

सुधियों का ताना -बाना!

वे शैशव के पल

वह बेफ़िक्री

कुछ खेलकूद

कुछ नाशुक्री,

हँसी गूँजती किलकारियाँ  

खुशियों के ऊँचे फव्वारे!

यौवन का मदमाता वसंत

वो बरखा की पागल बूँदें

जाड़ों की सिरहन से काँपतीं

यादों के डंठल पे

वो शूलें !

साल एक पर

मौसम अनेक

‘पल पल परिवर्तित प्रकृति वेश ‘

मेरे जीवन की खिड़की के आगे

चिर परिचित वो  मेरा मेहमान !

 

- लावण्या शर्मा शाह 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें