कष्टों को हरे हैं कृष्ण मंगल करें हैं कृष्ण,
श्रीकृष्ण सुमिरन भक्तों सदा सुखदाई है।
धर्म की पुकार कृष्ण शक्ति का प्रसार कृष्ण,
सुदर्शन हाथ ले अधर्म को सुधारते।
कृपा कृष्ण की अपार करें सबका उद्धार,
अपने भक्तों को कृष्ण कभी ना बिसारते।
धर्म संस्थापना हेतु सुनीति सत्यापना हेतु
कृष्णावतार ले सदा धरा को है तारते।
कोख में ही मरने को लाचार हुई बेटियाँ
उनको बचाने बनवारी आप आइए।
हो रहा है सरेआम नारी चीर का हरण,
नारियाँ बचाने गिरधारी आप आइए।
प्रेम हुआ है शिकार कामना का व्यापार,
प्रीत सिखलाने हे मुरारी आप आइए।
अधर्म का है शोर बड़ा धर्म कमजोर पड़ा,
धर्म को बचाने चक्रधारी आप आइए।
आ नहीं सकते अगर इतना कीजिए मगर
बेटियों की श्रेष्ठता समाज को बताइए।
चीर को बढ़ाएँ नहीं करें पूरी यही कमी,
आत्मरक्षा हेतु नारी सबल बनाइए।
कामना या वासना शिकार हो ना प्रेम कभी,
प्रीत की रीत वाली बाँसुरी सुनाइए।
धर्म सदा हो प्रखर आत्मज्ञान हो मुखर,
यदा-यदा ही धर्मस्य का वादा निभाइए।
जो हुआ वह ठीक हुआ हो रहा वह ठीक है,
होने वाला जो है उसका उचित स्थान है।
क्या लाए जो रोते हो क्या पाए जो खोते हो,
पैदा क्या किया था जो उसका मलान है।
जो लिया यहीं से लिया जो दिया यहीं को दिया,
आज जो तुम्हारा कल किसी और का खजाना है।
परिवर्तन संसार का नियम सकारात्मक बदले हम
प्रकृति का कानूनी यही यही प्रावधान है।
गीता में संदेश दिया यही उपदेश दिया,
दुनिया में सर्वाधिक कर्म ही प्रधान है।
फल की चिंता ना करें कर्मपथ पर बढ़ें,
इसी गूढ़ बात में हीं विश्व कल्याण है।
जैसा बीज बोयेंगे हम वैसा फल पाएँगे,
यही सिद्धांत तो विधि का विधान है।
गीता का यही है सार फल तो कर्म के पार,
ज्ञान देते यही हमें श्रीकृष्ण भगवान है।
डॉ. श्वेता सिन्हा
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