वो भौंकते कुत्तों से नहीं डरती
अपनी सधी चाल से है चलती
बेखौफ अपनी रोटी तलाशती
अपनी-अपनी बोरी उठाए
वो कूड़ा बीनती लड़कियाँ
आम बच्चियों- सी छोटी दिखती
पर हो जाती है परिपक्व जल्द
समझ लेती है फर्क गदीं नजरों का
गंदगी को हर दिन नापते चलती
वो कूड़ा बीनती लड़कियाँ
बांट लेती वो साथ-साथ चलती
जो कुछ बीन इकट्ठा करती,
मानों बांट रही हो कुछ खुशियाँ
झगड़ा करके फिर से हँसती
वो कूड़ा बीनती लड़कियाँ
किसी स्कूल को जाती टोलियाँ
हाथों मे आईसक्रीम और गोलियाँ
उनकी वर्दी, बस्तों
के आकर्षण में
किसी परी कथा को खोजती
वो कूड़ा बीनती लड़कियाँ,
कुछ अलग होकर भी होती हैं
आम बच्चियों -सी ही चंचल
रोज भरती नए रंग अरमानों में
आसमान को भी छूना चाहती
वो कूड़ा बीनती लड़कियाँ ....
- हरदीप सबरवाल
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