जिस देश में जाति नहीं थी
वहाँ रंग हाजिर रहा
जहाँ रंग के भेद नहीं थे
वहाँ नस्ल और भाषा बोलती रही
दो सीढ़ियाँ ऊपर चढ़ते ही
वर्ग भेद सिर पर चढ़ने लगा,
ऐसा भी नहीं कि लिंगभेद एक तरफा रहा
दूसरे पक्ष का भी जहाँ जोर चला, खूब
चला
जंगल में सदा धूप पर बड़े वृक्ष काबिज
रहे
जितने भी कदम बढ़े, घास
को रौंद कर ही बढ़े
कितना ही लंबा सफर तय किया जाए धरती पर
ऐसा कोई कोना नहीं रहा जहाँ समता हाजिर
रही
- हरदीप सबरवाल
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