रविवार, 14 जनवरी 2024

जहाँ जाति नहीं थी

 जिस देश में जाति नहीं थी

वहाँ रंग हाजिर रहा

जहाँ रंग के भेद नहीं थे

वहाँ नस्ल और भाषा बोलती रही

 

दो सीढ़ियाँ ऊपर चढ़ते ही

वर्ग भेद सिर पर चढ़ने लगा,

 

ऐसा भी नहीं कि लिंगभेद एक तरफा रहा

दूसरे पक्ष का भी जहाँ जोर चला, खूब चला

 

जंगल में सदा धूप पर बड़े वृक्ष काबिज रहे

जितने भी कदम बढ़े, घास को रौंद कर ही बढ़े

 

कितना ही लंबा सफर तय किया जाए धरती पर

ऐसा कोई कोना नहीं रहा जहाँ समता हाजिर रही

 

- हरदीप सबरवाल

 

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