घड़ी की सुइयों और घर की दहलीज़ों में उलझी
लड़की
अपनी असहमति को तौलना सीख रही है
संकोच अचानक आ घेरते हैं और
साहस जुटाने में पूरा जीवन लग जाता है
और
फिर यह दुखांत
कौन झेलना चाहता है भला
कि नदी चाहती थी
लौट जाना मुहाने से
ना मिलना समुद्र में
वह दुनिया के तमाम दहलीज़ों को
ऊन के गोलों -सा लपेटती है
अबकी दुशाला नहीं,
फुर्सत में
फुटमैट बुनेगी उनसे
लड़की की फटी हुई जीन्स
चुहल का कारण थी
देखने वालो में
लड़की
अपनी देह को
देखने के तरीके
तलाश रही थी
- जया श्रीनिवासन
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