महानगर में घुसने से पहले
ट्रेन रुकती है
आउटर पर
बदरंग बीहड़ से
घबराकर
ट्रेन के भीतर बैठे यात्री
हड़बड़ा कर सामान समेटते,
झांकते, उतावली में
लंबी यात्रा से ऊबे
नहीं होते सशंकित ज़रा भी
पड़ाव पर पहुँचने से
महानगर खो चुका है अपना आतंक
उनके लिए
उनके लिए
यात्रा पर निकलना नहीं
यात्रा से निकलना ज्यादा लुभावना है
शायद
महानगर
यायावरी को क़त्ल कर रौंदते है -
दिन-रात
ट्रेनें इसी से आतंकित हो
ठिठक जाती हैं
आउटर पर
ज़रा कुछ देर
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