गुरुवार, 1 फ़रवरी 2024

ग़ज़ल

मैं  पीड़ा का, पीड़ा  मेरीहम   दोनों   की   जोड़ी   है!

छोड़ो!  इस  इतिहास  में  जाना  जोड़ी  किसने जोड़ी  है?

 

छूने   से   पहले,  छूने   की सदियों  की  तैयारी   थी

तब  जाकर   के   कान्हा  ने  राधा  की  बाँह  मरोड़ी  है।

 

माखन - मिश्री   जैसे   लगते   सूरज, चाँद, सितारे   सब

इस  सृष्टि  की  काली  मटकी   कान्हा  जी   ने   फोड़ी  है!

 

अपनी - अपनी   खाई   में  हम   दोनों   जाकर  दूर  गिरे

यह  तय  करना  मुश्किल  है  कि  रस्सी  किसने  छोड़ी है!

 

बाहर  के  दिखने   वाले   से   अंदर   के  उस  ग़ायब  तक

एक  अकेली साँस  बेचारी   कितनी   ज़्यादा   दौड़ी  है!

 

 

इससे  ज़्यादा  सहने  की  अब  मुझमें  ताक़त  है  ही  नहीं

ऐ सीने   के   पत्थर!   सुन  ले, सीना   पत्थर   थोड़ी   है!

- मनमीत 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें