दीवालों पर लकीर खींचकर
देते थे किलकारी,
माँ जल्दी से आकर
देखो मेरी चित्रकारी!
बिना रंग रोगन की है
कितनी सुंदर फुलकारी,
वो आती थी दौड़कर
गालों पर देती पुचकारी!!
कुत्ते की कान जो ऐंठी
लगा जोर-जोर से भौंकने,
कुत्ते की कान न छोड़ी
लगा हाँ, जोर-जोर से रोने!
पापा की नींद खराब हुई
मुझे क्या लेना - देना,
बेचारे की कान छुड़ाई
दे हाथ में एक खिलौना!!
आटे का कठौता उलट गया था
जब आँचल पकड़ लटक गया,
पापा को पावरोटी खाना पड़ा था
लंच का डब्बा बेचारा सटक गया!
लोइये को तोड़-तोड़ कर
इधर-उधर जो बिखड़ा दिया,
दादी बोलीं - ये कौआ, ये
मैना
ये बतख भी तूने खूब बना दिया!!
दिखे दादा जी धोती पहनते,
अब क्या था मचल पड़ा,
फुलकारी दिखाई, कुत्ते
का कान खींच डाला
कौआ-मैना-बतख बिखरा रहा पड़ा!
सफेद नहीं हुए थे बाल दादा जी के धूप
में
समझ गए पोते की बात,
कंधे पर बैठ उनके खिलौने की आस में
निकल पड़े अब हम उनके साथ!!
- शंभु अमिताभ
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