बुधवार, 7 फ़रवरी 2024

सुकून


आमने-सामने थे...

सड़क के इस पार ऊँची इमारत...

उस पार कुछ झुग्गियाँ...

इस पार 'एक' को...

न जाने क्यों...

नींद नहीं आती थी...

काम ज़्यादा था... तनाव था...

उस पार 'बहुत' से रात भर जागते थे...

भूख के मारे...

बातों के सहारे...

रात गुज़ारते थे...

इस पार और उस पार...

कई बार आँखों में बात होती थी...

इस पार वाला एक रात को...

पहुँचा उस पार...

हाथों में लिए खाने के कुछ पैकेट...

उस पार चेहरे चमक उठे...

झिझके, फिर खाने पर टूट पड़े...

ख़ुशी के मोती थे...

इस पार और उस पार वालों की आँखों में...

उस रात सभी को नींद आई ...

दोनों तरफ़ सुकून था...

 

 प्रदीप शर्मा

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