अतीत की बाहों में सिमटे हैं,
कुछ मटमैले , धुंधले
से अंधेरे,
कुछ टिमटिमाती लौ के उजाले,
कुछ वर्षा की मीठी - ठंडी फुहार,
तो कुछ पतझड़ के पीले सूखे पत्ते।
जिन्हें उठा कर हौले से सहला लेती हूँ,
नम हो जाती हैं कोरों तक गहरी पलकें,
और लुढ़क जाता है वह
छुपा हुआ दर्द गुमसुम पुराना।
तब ओढ़ लेती हूँ एक
महक अपनी मीठी यादों की
सुनहरी रश्मियों की
शीतल बयार के मधुर राग संग
और देखती हूँ भविष्य के
उस सतरंगी इंद्रधनुष को
रंगोली बिखेरते सुंदर दृश्य
गुलाब के फूलों से अप्रतिम ।
नन्हे पौधों संग झूमते -गाते
सुहाने पल ।
-मनवीन कौर
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