अंतिम पल हैं, जाते- जाते
पल भर को तुम मुड़कर तकना
आँसू के कुछ कतरे तन पर
ओस सरीखे पड़े हुए हैं
फूल तुम्हारे मुस्कानों के
अंग हमारे जड़े हुए हैं
सपनों के नन्हे नन्हे से
कितने पौधे खड़े हुए हैं
कभी किसी एकाकी पल में
जिनको बोया मेरे अँगना
पल भर को तुम मुड़कर तकना
कभी मिलन में हुए उल्लसित
प्रियतम को बाहों में भरकर
कभी विरह में रोया तुमने
मेरे काँधों पर सिर रखकर
खोने पाने औ सुख दुःख का
रहा सदा साक्षी मैं हर पल
आज मेरी अंतिम बेला में
जाते तुम, पल
एक ठिठकना
पल भर को तुम मुड़कर तकना
नव वर्ष तुम्हारा हो मंगलमय
मैं अतीत हो जाऊँगा
कालचक्र के महाजलधि के
अंतह में सो जाऊँगा
कभी किसी अलसाए पल में
याद तुम्हें जो आऊँगा
नाम मेरा अधरों पर अपने
मुसकाकर हौले से धरना
पल भर को तुम मुड़कर तकना
-
प्रताप नारायण सिंह
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