ऐ गये साल
मैं तुझको न भूल पाऊँगा
तू मेरे कितने ही ख़्वाबों को सच बना के
गया
तू मेरी ज़िन्दगी में ख़ुशनसीबी ला के
गया
मैं क्या गिनाऊँ, तेरे
पहले क्या न था मुझमें
मैं क्या बताऊँ, तूने
क्या सुक़ूं भरा मुझमें
जो तुझसे पहले मिला था, वो
कुछ छिना भी है
मेरे वजूद मेरे ‘कुछ’ ख़ैर के बिना भी है
जो साँस आयी, उसका
जाना तय हुआ समझूँ
जो मिल रहा है उसी को फ़क़त दुआ समझूँ
ये खेल ज़िन्दगी का अपने हाथ है ही नहीं
है कौन, जिसके मुक़द्दर में रात है ही नहीं
हरेक रात के बाद आई सुब्ह, क्या
कम है
बहुत ख़ुशी है ज़िन्दगी में, ज़रा-सा
ग़म है
ये ग़म भी याद की लज़्ज़त बढ़ाये जाता है
ख़ुशी की ख़ुश्कियों को नम बनाये जाता
है
जो लम्हा बीत रहा है, उसे
सलाम करूँ
बस इस तरह मैं ज़िन्दगी का एहतराम करूँ
मैं नये साल में तुझसे न मुँह चुराऊँगा
ऐ गये साल
मैं तुझको न भूल पाऊँगा
- चिराग़ जैन
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