नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन
आमों पर खूब बौर आये
भँवरों की टोली मँडराये
बगिया की अमराई में फिर
कोकिल पंचम स्वर में गाये
फिर उठें गंध के गुब्बारे
फिर महके अपना चंदन वन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन!
गौरैया बिना डरे आये
घर में घोंसला बना जाये
छत की मुँडेर पर बैठ काग
कह काँव–काँव फिर उड़ जाये
मन में मिसिरी घुलती जाये
सबके आँगन हों सुखद सगुन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन!
बच्चों से छिने नहीं बचपन
वृद्धों का ऊबे कभी न मन
हो साथ जोश के होश सदा
मर्यादित बनी रहे फैशन
जिस्मों की यूँ न नुमाइश हो
बदरँग हो जायें घर आँगन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन!
घाटी में फिर से फूल खिलें
फिर रुके शिकारे तैर चलें
बह उठे प्रेम की मंदाकिनी
हिम–शिखर हिमालय से पिघलें
सोहनी मचले, महिबाल
चले
राँझे की हीर करे नर्तन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन!
विज्ञान ज्ञान के छुए शिखर
पर चले शांति के ही पथ पर
हिंदी भाषा के पंख लगा
कम्प्यूटर जी पहुँचें घर–घर
वे देश रहें खुशहाल ‘व्योम’
धरती पर जहाँ प्रवासी जन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन!
थोड़ी–सी राजनीति सुधरे
थोड़ा–सा जन–गण भी सुधरे
मीडिया चले सच के पथ पर
छँट जायँ निराशा के कुहरे
शिक्षा के विस्तृत आँगन में
कुछ और हो सके परिवर्तन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन!
कोरोना दुनिया से जाये
पहले–सी रौनक आ जाये
आतंकवाद का इस जग से
नामोनिशान ही मिट जाये
हर देश–देश का आपस में
कुछ और बढ़ सके हित–चिंतन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन!
हिंदी को जग में मान मिले
अपने घर में पहचान मिले
भारत की सब भाषाओं को
पूरा–पूरा सम्मान मिले
हर बोली के हों शब्द–कोश
घोलें भाषा में मीठापन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन!
- डा. जगदीश व्योम
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