नये वर्ष का सूरज
सोन किरन ले आया
नभ
के नव पन्ने से
तमस
दूर सरकाया
जीवन
के स्वप्न शृंग
अँगड़ा कर जाग गये
घाटी
के छाया मृग
घबरा
कर भाग गये
प्रति कण के प्रति स्वर ने
राग
भैरवी गाया
झरनों
से सागर तक
सोये जल आग लगी
तट-बाँहों झूम
गयीं
लहरें
अनुराग ठगी
पिघल गया अन्तर वन
यद्यपि था
कुहराया
खेत, गाँव, नगर चले
विद्यालय चहक
गये
द्वार,गली,सड़क भीड़
जगर-मगर-जगर जये
चक्र-वृक्ष हरियाता
क्रमश: है
गदराया
महिनों का, कृष्ण पक्ष
दम्भी
जो,
ठहर
गया
हेकड़
को कुचलेगा
समय देख
शुक्ल नया
इस ध्रुव से उस ध्रुव तक
आस
रंग फहराया!
नये
वर्ष का सूरज
सोन किरन ले आया!
- सुभाष
वसिष्ठ
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