रविवार, 3 मार्च 2024

नये वर्ष का सूरज

 नये  वर्ष  का  सूरज

सोन किरन ले आया

नभ  के  नव पन्ने से

तमस  दूर  सरकाया

 

जीवन  के स्वप्न शृंग

अँगड़ा कर जाग गये

घाटी  के  छाया  मृग

घबरा  कर भाग गये

 

प्रति कण के प्रति स्वर ने

राग  भैरवी   गाया

 

झरनों  से सागर तक

सोये जल आग लगी

तट-बाँहों  झूम  गयीं

लहरें  अनुराग  ठगी

 

पिघल गया अन्तर वन

यद्यपि  था  कुहराया 

 

खेत, गाँव, नगर चले

विद्यालय  चहक  गये

द्वार,गली,सड़क भीड़

जगर-मगर-जगर जये

 

चक्र-वृक्ष   हरियाता

क्रमश:  है  गदराया 

 

महिनों  का, कृष्ण पक्ष

दम्भी  जो, 

ठहर  गया

हेकड़   को   कुचलेगा

समय देख 

शुक्ल नया

 

इस ध्रुव से उस ध्रुव तक

आस  रंग  फहराया!

 

नये   वर्ष  का  सूरज

सोन किरन ले आया!

- सुभाष वसिष्ठ

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