सोमवार, 4 मार्च 2024

बीत गया

 दिन बीत गया गुनते, गुनते,

खोए समय और सपनों को,

कितना वक्त गया हाहाकारों में,

जिंदगी जी ही कहाँ सही अर्थों में

 

आया समय भी गुजरेगा अमर्यादित बातों में,

छल, कपट और स्वार्थ के झंझावातों में,

जिन बातों को कभी नहीं लिया शब्दकोश में,

उनमें ही गुजरा वक्त जब होश था .

 

सच है, सपनों को पाना होता है,

बिना अधिक विचारे पालना होता है।

वरना सपने खेत में खड़ी फसल के समान,

लुटेरे चट कर जाते हैं।

 

यह कहानी है न जाने कितने अपनों की,

उनके टूटे सपनों और जख्मों की,

जो मर्यादित रहे रिश्तों को पालने में,

उनके साथ होते रहे निर्लज्ज व्यवहार।

 

क्या सारे शास्त्र सिर्फ शब्दों और पाठों में है,

श्लोकों के अर्थ सिर्फ मुहावरों में हैं।

वरना  इतना विकास और सारे धर्मों के होते,

मनुष्य पर क्यों होते इतने अत्याचार?

 

    -अमिताभ शुक्ल

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