हँसता रहता है वसंत भी,
पतझड़ के केशों में प्राय:,
बन केसर का फूल |
फूलों को चुनती रहती है,
खेतों में नेहा,
बादल की छतरी के नीचे,
नाच रहे केहा,
झींसी झरी, लिपट
बूँदों से,
हँसकर गले मिली है आकर,
घूँघट काढ़े धूल |
नहीं हुई अपवित्र घास के,
पाँवों की पायल,
नहीं हुआ है हरिअर-हरिअर,
गोयँड़ भी घायल,
हिंडोला सा, झूल
रही है,
पुरवा की बाँहों में जकड़ी,
पुनर्नवा की झूल |
सूर्योदय होने की आहट,
लाई नई किरन,
लगे कुलाँचे भरने लय के,
हिरनी और हिरन,
पीड़ा के अक्षर बन हँसते,
पिछले से पिछले के जो हैं,
कूलवती के कूल |
छोटा शहर बसा भाषा का,
मधुरित मृदु शब्दित,
शब्दशक्ति पीड़ा की विलिखित,
एक गीत चर्चित,
आँसू के गालों की लाली,
भावों के किंजल्क कथानक,
त्रासदियों के मूल |
शिवानन्द सिंह 'सहयोगी'
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