इस शहर पार समुन्दर नहीं है
इस शहर धार पहाड़ भी नहीं है।
न मैं डूब सकता हूँ और ना ही
कहीं के ऊँचे ढलान से
गिर सकता हूँ।
सड़कों की उलझीं हुई उत्कंठा,
सिसकियाँ और थकावट लिए,
सिर्फ बर्फ के गोले की तरह,
ढलते सूरज की तरह
पिघलता रहता हूँ।
इस शहर में मैं
समुन्दर ढूँढ़ता हूँ।
शहर के आसपास
पहाड़ ढूँढ़ता हूँ।
मुझे चाह है भले ऊँचाई की
ढूँढ़ता हूँ गाढ़े गहराइयों को,
न अपना निशान मिलता हैं,
और न ही अपनों का
पता ढूँढ़ पाया हूँ।
इस शहर पार समुन्दर नहीं है
इस शहर धार पहाड़ भी नहीं है।
फिर भी भीड़ में डुब जाता हूँ,
गिरते सन्नाटों में बेवक्त
कई शोर सुनता हूँ।
इस शहर पार
समुन्दर ढूँढ़ता हूँ।
पहाड़ ढूँढ़ता
हूँ।
- निलॉय
रॉय
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