मैं इतनी जल्दी
कैसे
छोड़ दूँ
यह
दुनिया!
अभी
सूखती नदियों की तरह
उदास
खड़ी हैं बहनें
भाई
फटे गमछे से
बाँधे
है कान !
और
हिमालय बर्फ़ से जमा देना चाहता है
शरीर
की सारी गंगोत्रियाँ
मेरी
माँ बुहारती है ज़िन्दगी
साँसे
जिस्म की कौंधती बिजली की तरह
चीरती
हैं भाषा तक
शब्द
फूटते फुग्गों की तरह
चिथड़ों
में उड़ जाते
रोज़-रोज़
होतॊ मौत
भूखे
बच्चे की
सीने
में लगती बेकारी की गोली से
भाई
काँखता नहीं !
मैं
चीख़ता नहीं क्यों ?
पुकारता
हूँ
मेरा
गाँव मेरा मुहल्ला
मरघट
के पास मिली ज़मीन
कॉलोनी
धँसी
हुई आँखों में
सामने
उड़ती हैं
झालर-झालर
चिंदियाँ !
पेड
से चिरी-गिरी डालों की तरह
सूखती
लटकती भुजाएँ
सुरंग
से तोड़े गए
पत्थरों
की तरह
चिल्पा-चिल्पा
चिथड़ा एहसास
चुभते
हैं
चुभते
हैं फूल से
तोतली
बोली बिलते
बच्चों
की हथेलियों पर
उगे
हुए काँटें
धूल
भरे बिस्तरों पर
थका
हुआ प्यार
पर
तकिए में छुपे हुए धड़कते संकल्प
चुभते
हैं
गंजी
में चिपके हुए साग के टुकड़े
पर
भूखी बुहनियों की त्वचा पर
जैसे
कोई फूँक-फूँक
जगाता
है प्यार
रचता
है सार
एक
हिमालय से ऊँची चढ़ाई
चढ़ना
है मुझे
साथ
दोगे क्या?
कटोरी
के पानी के पार
जाना
है हमें
मैं
छोड़ नहीं सकता ये दुनिया
इतनी
जल्दी कैसे छोड़ दूँ ये दुनिया !!
- मलय
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