हिन्दी सिर्फ भाषा नहीं है
यह
है भावों की अभव्यक्ति
हिन्दी
तुम
दिव्य
भुवन भास्कर
करबद्ध
वंदन अभिनन्दन
हिन्दी
तुम
तुम्हारे
पदचिह्न पर जब-जब चले हम
तुम
ने जोड़ा हमें अपनी माटी से
हिन्दी
तुम
एक
भाषा
एक
फोटो फ्रेम जैसी
फ्रेम
में जड़ी हैं हमारी पहचान
मान
अभिमान
अभिनंदन
अपनी संस्कृति
हिन्दी
तुम
माथे
की हो चंदन रोली
तुम
माला हो रुद्राक्ष की
पहना
कर सबको
कर
दिया है ज्ञानालोकित
हिन्दी
तुमको मान लिया कान्हा
खुद
को मान लिया है मीरा
प्रवास
में भाषा का वृंदावन बना
हिन्दी
के मोर पंख खिला लिए हैं
गद्य, छंद, लय, भेद, रस, श्रृंगार, भाव
को
भाषा के हवन-कुंड में डाल दिया है
धुआँ
बस आसमां छूने को है
हिन्दी
तुम
ब्रह्मा
के कमंडल से बही धार हो
भाषाओ
का हार है ‘हिंदी’
हिन्दी
का चंद्रयान तो कब का परचम लहरा चुका
हिन्दी
तुम
हमारी
देह आत्मा
अन्तर्सम्बंधों की भाव भूमि है हिन्दी
हिन्दी
तुम
सुवासित
कस्तूरी
महका
रही पूरा विश्वमंडल
अब
भाषा ने करवट बदली है
आज
मेरे विदेशी मित्र जब मुझसे हिन्दी में बात करते हैं तो
मुझे
आनंदित करती है भाषा की महक
प्रवास
में मुझे हिन्दी नृत्य करती हुई
एक
अप्सरा सी दिखती है
बजने
लगती है मेरे कानों में
बिस्मिल्ला
खां की शहनाई
मेरी
रूह पर फूल खिल-खिल आते हैं
हिन्दी
की महक से
प्रवास
बसंती हो जाता है
मैं
द्विज हो जाती हूँ
द्विज..
वह
जो दो बार जन्म लेता है।
-अनिता कपूर
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