सियाराम का नाम है, ज्यूँ केवट की नाव
भवसागर
से पार कर, पावन करती भाव
मन
में हो सन्तोष धन, रहे न कोई पीर।
मन
मेरा हनुमान सम, जिसमें हों रघुबीर॥
सत्य
हमारे मन बसा, होते नहीं अधीर।
जिस
घर में हो राम धन, सबसे बड़ा अमीर
राम
लौटकर आ गये, सिया लखन के साथ।
कौशल्या
माँ ने विहंस, चूमे उनके माथ॥
अपने
अंदर जो बसा, रावण दिया जलाय।
मन
में बस प्रभु राम हैं, उत्सव रहे मनाय॥
दो
आख़र की है सिया, दो आख़र के राम।
जो
इनको सुमिरे सदा, पाये चारों धाम॥
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