जीवन के कोहरे का परदा
आशा
की किरणों ने
तोड़ा
मेरे
टूटे दिल को
लोगो
मेरे
ही इस दिल ने
जोड़ा
अंदर-बाहर धूप
खिली!
वह कितनी तो दूर है मुझ से
लेकिन उस को सचमुच देखा
जीवन
को रंगीन किये
है
एक
वही काजल की
रेखा
उसको छू कर धूप खिली!
मैंने
तो सोचा था
लोगो
उसके
बिन मैं मर
जाऊँगा
जीवन
में अँधियारा होगा
ठोकर - ठोकर टकराऊँगा
मगर बराबर धूप खिली!
शब्दों का
धूना जलता है
आँसू - आँसू होम
दिया है
अपनी
मज्जा के ईंधन
से
छोटा
सूरज बना लिया
है
इतना मर कर धूप खिली!
उजियारे ने
अंधा कर के
जब
अँधियारा छीन लिया
तब जा कर मैं समझा लोगो
मैंने क्या
अपराध किया!
हाय! मुक़द्दर! धूप खिली!
-मन मीत
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