शनिवार, 9 मार्च 2024

'श्रद्धांजलि'

 अपनी ही  चमड़ी  से  अपनी

चमड़ी कब से  छील  रहा  हूँ

अब सूखा  तालाब हूँ लेकिन

पहले  बहती   झील  रहा  हूँ

 

ऐसा    बनने    से    पहले   मुझ को   जाना  था  डूब!

इधर  लिखी  'श्रद्धांजलि' और उधर  लिखा 'क्या ख़ूब'!

 

दिल में असली  हरियाली थी

नक़ली  बाग़  नहीं   होते   थे

आँसू   हीरों  से    मंहगे    थे

सस्ते  दाग़   नहीं    होते    थे

 

पहले  गीली   दूब  थे  हम  सब  अब  हैं   सूखी  दूब!

इधर लिखी  'श्रद्धांजलि' और उधर  लिखा 'क्या ख़ूब'!

 

इतना  तेल    लगाते  हैं   सब

बू   आती   है   चिकनाई   से

अब  किरदार  नहीं  मिलते हैं

लोग  हुए  हैं   सब  काई   से

 

जिससे   भी    मिलते    हैं,  कहते :  तुम  मेरे  महबूब!

इधर  लिखी  'श्रद्धांजलि' और उधर  लिखा 'क्या ख़ूब'!

 

नई  सदी  के  हाथ  में  दे कर

एक  खिलौना   मोबाइल  का

अच्छे    ख़ासे    इंसानों    को

फोल्डर कर  डाला फ़ाइल का

 

छोटे - छोटे   बच्चों   की   भी   निकल   रही   है  कूब!

इधर  लिखी  'श्रद्धांजलि' और उधर  लिखा 'क्या ख़ूब'!

 

इतनी  जल्दी  भाग  रहे  हम

जाने  क्या  कुछ  कर जाएँगे

इतनी   जल्दी     भागेंगे   तो

आधे   में   ही    मर    जाएँगे

 

फिर   अपनी   ही   लाश  का  कहना : क्या दौड़ी! तू ख़ूब!

इधर  लिखी  'श्रद्धांजलि' और उधर  लिखा 'क्या ख़ूब'!

 

-मन मीत

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