ऐ मेरे देश
मैं तुझे प्यार करता हूँ
जब-जब तेरी बात करता हूँ
मेरा मुट्ठी-भर दिल
एक कबूतर की तरह उड़ने लगता है
मैं
तुझे कैसे बताऊँ
कि जब मैं दर्पण में अपने आपको देखता
हूँ
तो बिलकुल तेरे नक़्शे जैसा लगता हूँ
मेरा यह सर कश्मीर
मेरी एक बाँह काबुल से आगे
तो दूसरी बाँह म्यानमार से दूर...
ऐ मेरे देश
तू मेरे भीतर रहता है
हाँलाकि कटता ही जा रहा है तू
सिकुड़ता ही जा रहा है
लेकिन मैं जानता हूँ : शरीर नष्ट होता
है : आत्मा नहीं!
ऐ मेरे देश
ऐ मेरी आत्मा
तू अगर सिकुड़ कर मेरे घर तक भी रह
जाएगा
तब भी तू इस संसार जितना बड़ा रहेगा...
ऐ मेरे देश
मुझे तेरी सौगंध
कि किसी लड़की ने नहीं
कि किसी धर्म ने नहीं
बल्कि तूने ही सिखाया मुझे-
अद्वैत किसे कहते हैं!
-मन मीत
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें