मन
कभी-कभी मन सोचने लगता है,
लोग इतना छल कपट करके,
लोग इतना झूठ बोलकर,
लोग एक दूसरे के साथ इतना धोखा करके,
अपने हर झूठ को सच साबित करके,
लोग परेशान नहीं होते,
लोग थकते नहीं है,
उनकी आत्मा उन्हें धिक्कारती नहीं है,
किसी को दर्द गम परेशानी देकर
लोग कैसे सुकून से जी लेते हैं,
कैसे सुकून से नींद आ जाती है,
कैसे सुकून से वो मुस्कुरा लेते हैं,
हम इंसानों के बीच में रहते हैं या,
हर कोई सिर्फ बिजनेस कर रहा है,
रिश्तों का सौदा कर रहा है,
दोस्ती के साथ विश्वास घात कर रहा है,
भावनाओं के साथ खेलकर,
अपना मनोरंजन कर रहा है,
दो पल की खुशी के लिए, कोई
किसी की जिंदगी,
कैसे बर्बाद कर सकता है,
अपने थोड़े से सुकून और स्वार्थ के लिए,
कोई किसी की जिंदगी में,
कैसे आँसू भर सकता है।
क्या हम पत्थरों के शहर में शीशे बेच
रहे हैं।
हर कोई खुद को सफल बनाने के लिए,
एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगा हुआ
है।
खुद की योग्यता से नहीं,
दूसरों को अपमानित करके,
आगे बढ़ना चाहते हैं।
और जो अपनी आत्मा को नहीं मार पता।
वह इस दुनिया में सिर्फ ठोकरें ही खाते
है।
जो जितना चापलूस होता है।
वही सबसे ज्यादा चहेता होता है।
घड़ियाल आँसू बहनों वालों के ही,
लोग हमदर्द होते हैं।
खामोशी से जो सहता है,
उस पर सिर्फ पत्थर फेंके जाते हैं।
जीवन एक रंग मंच ही तो है,
हम सब उसमें अपने किरदार निभा रहे हैं।
सबके चेहरे पर नकली मुखौटा है।
और हमदर्दी के नए गीत गा रहे हैं।
,,,,,,,,,, परेशानियाँ में हर किसी ने कहा हम है ना।
फिर चल देते हैं एक घाव दे करके।
मेरे सपने ,मेरी
उम्मीदें, मेरी इच्छाएँ।
एक बार फिर सब खत्म करके,
और फिर एक बार मेरी परछाई,
मुझ पर हँसती है।
हिम्मत बटोर कर फिर खड़ी होती हूँ।
फिर एक बार नया छल कपट सहने के लिए।।
-निर्मला द्विवेदी
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